सोयाबीन की खेती की जानकारी- उचित तरीके से खेती कर पा सकते है ज्यादा उत्पादन
सोयाबीन की खेती खरीफ मौसम में की जाती है, यह एक तिलहन फसल है जिसमे 20-22 प्रतिशत तक तेल और 40-44 प्रोटीन की मात्रा उपलब्ध होती है। बाकी तिलहनों या दलहनों फसलों से ज्यादा सोयाबीन में प्रोटीन और तेल की मात्रा ज्यादा होती है इसलिय सोया दूध, सोया और सोया आहार ज्यादा प्रचलित है। भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन की खेती वाला राज्य मध्यप्रदेश है। आइये जाने कुछ बहुत महत्वपूर्ण बाते जो सोयाबीन की खेती के लिए बहुत आवश्यक है जिससे किसान को अच्छा उत्पादन मिल पाएगा।
सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
- सोयाबीन बीज को अंकुरण होने के लिए 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्कता होती है।
- फसल की अच्छी उपज के लिए 30-60 सेंटीमीटर वर्षा उपयुक्त होती है।
- कटाई के लिए उचित तापमान 18 -25 डिग्री सेल्सियस।
- अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सोयाबीन की खेती के लिए उचित होती है पर अगर मिट्टी हलकी या कम रेतली है तो भी सोयाबीन की खेती की जा सकती है।
- मिट्टी का pH 6 -7.5 होना चाहिए।
सोयाबीन की खेती में खेत और बिजाई की तैयारी
- खेत में दो-तीन बार सुहागे से अच्छे से जोताई करें और 9-12 इंच गेहराई तक जुताई करे।
- सोयाबीन की बिजाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए।
- एक एकड़ में 25-30 किलो ग्राम बीज का प्रयोग करे।
- बीज को 3-5 सेंटीमीटर की गहराई तक बोए।
- पौधे से पौधे की दूरी 4-7 सेंटीमीटर और पक्ति से पक्ति की दूरी 40-45 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
बीज दर और बीज उपचार:
- एक एकड़ में 25-30 किलो ग्राम बीज का प्रयोग करे।
- बीज उपचारण के लिए कप्तान या थीरम का 3 ग्राम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करे।
खाद या उर्वरक की मात्रा:
- बिजाई से पहले मिट्टी की जांच करा ले ताकि जिस पोषक तत्व की कमी हो उसकी जानकरी हो जाए।
- बिजाई से 15-20 दिन पहले सड़ी हुई गोबर की खाद 8-10 टन प्रति हेक्टेयर डाले।
- नाइट्रोजन 20-25 किलोग्राम, फॉस्फोरस 60-80 किलोग्राम, पोटाश 40-50 किलोग्राम और सल्फर 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करे।
सोयाबीन की उन्नत किस्मे:
उत्तर भारत पहाड़ी क्षेत्र: पूसा- 16, वी एल एस- 59, वी एल सोया- 47, हरा सोया, पंजाब- 1, शिलाजीत, पालम सोया, पी एस- 1241, पी एस- 1092, वी एल एस 63, वी एल सोया- 2 और पी एस- 1347आदि है।
उत्तर भारत मैदानी क्षेत्र: पी के- 416, डी एस- 9712, पूसा- 16, पी एस- 564, एस एल- 295, पी एस- 1042, एस एल- 525, पंजाब- 1, पी एस- 1024, पी एस- 1024, डी एस- 9814, पी एस- 1241और पी एस 1347 पूसा- 16,आदि है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र: प्रताप सोया- 9, इंदिरा सोया- 9, बिरसा सोयाबीन- 1, जे एस- 80-21 और एम ए यू एस- 71 आदि है।
मध्य भारत: जे एस- 335, एन आर सी- 37, जे एस- 93-05, जे एस- 80-21, जे एस- 95-60, एन आर सी- 7, समृद्धि और एम ए यू एस 81 आदि है।
दक्षिण भारत: एल एस बी- 1, को- 1, को- 2, प्रसाद, पूजा, पी एस- 1029, प्रतिकार, फूले कल्याणी और एम ए सी एस- 24, आदि है।
खरपतवार नियंत्रण:
- सोयाबीन की खेती में खरपतवार निंयत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई बिजाई के 15-20 दिन बाद और दूसरी 30-40 दिन बाद करनी चाहिए।
- बिजाई के 2-3 दिन के भीतर खरपतवार की नियंत्रण के लिए किसान पेण्डीमिथालीन 3.25 ली./हैक्टेयर या डाइक्लोसुलम 26 ग्राम /हैक्टेयर का उपयोग कर सकते हैं।
सिंचाई:
- सोयाबीन की फसल में 2-3 बार सिचाई की आवश्कता होती है।
- फली बनते समय ये ध्यान रखे की पानी की कमी न हो वरना इसका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ेगा
- सोयाबीन की खेती बारिश अगर उपयुक्त हो रही हो तो सिचाई की आवश्कता नहीं पड़ेगी।
- अगर ज्यादा बारिश की वजह से खेत में जल भराव हो गया हो तो जल निकासी का प्रबध जल्दी कर ले वरना फसल खराब हो सकती है।
फसल की कटाई और भण्डारण:
- कटाई हाथो से या दराटी से करे और गटठो को 1-2 दिन खेत में सूखने दे।
- फसल में जब फलिया अच्छे से सुख जाए और पतों का रंग पीला हो जाए तो कटाई शुरू कर दे।
- कटाई के बाद बीज पौधे से निकल ले।
- थ्रेसिंग के बाद बीज को 2-3 दिन धुप में सूखा ले और फिर उसका भण्डारण करे।